जाति-पाति के विरुद्ध अभियान
अस्पृश्यता हिन्दू - समाज का अभिशाप है, धर्मशास्त्रों में इसके लिए कोई स्थान नहीं
हरिजन भी हिन्दू समाज के उसी भांति अभिन्न अंग हैं जिस भांति क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, जैन, बौद्ध, सिख, आर्य समाजी अथवा सनातनी लोग हैं ।’ उनके प्रति समाज में उत्पन्न भेद-भाव की भावना चाहे वह धार्मिक हो या सामाजिक, राजनीतिक हो अथवा आर्थिक, समाप्त कर दी जानी चाहिए।
शास्त्रों में इसके लिए कोई स्थान नही है । भूतकाल में इस कारण काफी क्षति उठानी पड़ी है । अब हम इसे भविष्य में कदापि चालू रहने की आज्ञा नहीं दे सकते हैं । यह हिन्दू समाज के लिए पूर्ण आत्महत्या सदृश ही है ।