युग-पुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज
युगपुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी बचपन में राणा नान्हू सिंह के नाम से विख्यात थे। उनका आविर्भाव बाप्पा रावल के उस इतिहास प्रसिद्ध वंश में हुआ था, जिसमें उत्पन्न होकर राणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे स्वदेशाभिमानी वीरों ने देश और धर्म की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष किया। महाराणा प्रताप की तलवार ने जिस वंश के इतिहास को त्याग, वीरता और आत्म-सम्मान का इतिहास बना दिया, जिस धरती को शत्रुओं के रुधिर से सींच-सींच कर पवित्र और पूज्य बनाया, उसी मेवाड़ की धरती पर सिसोदिया वंश में जन्म लेकर राणा नान्हूसिंह ने भी अपने जीवन को त्याग और बलिदान का निदर्शन बना दिया।
राणा नान्हूसिंह का जन्म उदयपुर के राणा वंशी परिवार मे सन् 1894 में वैशाखी पूर्णिमा को हुआ था। बचपन में ही माता-पिता के स्वर्गवासी हो जाने के कारण उनके पालन-पोषण का दायित्व उनके चाचा पर आ पड़ा। उस समय उदयपुर के निकट एक नाथ पंथी योगी महात्मा फूलनाथ साधनारत थे। वे गोरखपुर स्थित श्री गोरक्षनाथ मंदिर के तत्कालीन महन्त श्री बलभद्रनाथ जी के शिष्य और महन्त सुन्दरनाथ जी के गुरुभाई थे। बाल्यावस्था में ही राणा नान्हू सिंह के माता-पिता हैजे की बीमारी में मर चुके थे। उनके चाचा सम्पत्ति के लोभ में उनसे छुटकारा चाहते थे। उन्होंने महात्मा फूलनाथजी से निवेदन किया - "सन्तान-प्राप्ति हेतु हमने यह मनौती मानी थी कि अपनी प्रथम सन्तान श्री गुरु गोरक्षनाथजी को समर्पित करेंगे। उनकी कृपा से मेरे कईं सन्तानें हो गयीं हैं। अस्तु, मैं अपनी प्रथम सन्तान श्री गुरु गोरक्षनाथजी के चरणों में समर्पित करना चाहता हूँ, किन्तु घर के लोगों का इस बालक के प्रति विशेष स्नेह एवं ममत्व है। इस कारण वे उसको अपने से अलग नहीं करना चाहते हैं, जिससे मुझे बराबर हार्दिक कष्ट रहता है । अतः आप मेरी इस मनौती को पूर्ण करने में सहायता करें। मैं गणगौरी के मेले के दिन जैसे ही बालक आप को समर्पित करूँ, आप उसे लेकर गोरखपुर चले जायें। अन्यथा घर के लोग उसे पुनः घर ले जायेंगे, जिसका मुझे जीवन भर खेद रहेगा।" श्री बाबा फूलनाथजी को चाचा के षड्यंत्र का पता नहीं था। उन्होंने सहज ही में उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और योजनानुसार चाचा ने जैसे ही बच्चे को समर्पित किया, वे तुरन्त उसे लेकर गोरखपुर आ गये। गोरखपुर पहुँचने पर उन्होंने तत्कालीन योगिराज श्री बाबा गम्भीरनाथ जी एवं अन्य लोगों से बालक राणा नान्हू सिंह के श्री गोरक्षनाथ जी को समर्पित करने की कहानी से अवगत किया और बताया कि उदयपुर के राणा ने अपने पुत्र को श्री गोरक्षनाथ जी के चरणों में समर्पित किया है। उधर उदयपुर में षड्यंत्री चाचा द्वारा यह प्रचार किया जा रहा था कि बालक मेले में गायब हो गया और उसे खोजने के लिए बनावटी व्यग्रता दिखाई । बाद में जो बातें प्रकाश में आई, उनसे पता चला कि उस समय सारे राजस्थान मे बालक राणा नान्हू सिंह की तलाश दिखावे के लिए चाचा ने कराई। तालाब में डूबने की आशंका समाप्त करने के लिए तालाब में जाल भी डाला गया, किन्तु बालक का कहाँ पता चलता! वह तो एक साजिश के साथ गोरखपुर पहुँचा दिया गया । श्री गोरक्षनाथ मंदिर पर बालक नान्हू सिंह को साधु-संतों एवं सन्यासियों के सम्पर्क में रहना पड़ा। राजवंश में उत्पन्न इस बालक को मंदिर में निवास करने वाला साधु-समाज आश्चर्य और आशंका मिश्रित कौतूहल से देखता था। उन्हें यह विश्वास था कि मंदिर के वातावरण में यह बालक अधिक दिनों तक टिक नहीं पायेगा। किन्तु बालक नान्हू सिंह को उसी समय योगीराज गम्भीरनाथ जी की अहैतुकी कृपा प्राप्त हो गई । योगिराज गम्भीरनाथ जी उस समय के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और ख्यातिलब्ध योगी थे। उनकी स्नेहच्छाया में बालक नान्हू सिंह को व्यवधानविहीन जीवन व्यतीत करने का अवसर मिला। नन्हें बालक की प्रतिभा को देखकर ही उस महान साधक ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि भविष्य में वह महान् यश की उपलब्धि करेगा।
शिक्षाः-
मंदिर की ओर से ही बालक नान्हू सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था की गई। स्थानीय जुबिली हाई स्कूल में उन्होंने सातवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की। प्रारम्भ से ही वे बड़े स्वाभिमानी थे। जुबिली हाई स्कूल के तत्कालीन प्रधानाचार्य राय साहब अघोरनाथ चट्टोपाध्याय से उनकी अनबन हो गई। फलतः उन्होंने सातवीं कक्षा के बाद स्कूल का परित्याग कर दिया। ...